नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में आरोपी द्वारा सिर्फ अदालत में पेश नहीं होने के आधार पर जमानत को रद्द नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कोलकाता उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें अदालत में पेश नहीं होने के आधार पर आरोपी की जमानत को रद्द कर दिया गया था।
जस्टिस बीआर गवई, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यदि किसी आरोप को जमानत पर रिहा किया जाता है और वह उसमें लगाई गई किसी भी शर्तों का उल्लंघन करता है तो जमानत को रद्द किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि ‘सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद हम आरोपी निजी रूप से कोर्ट में पेश नहीं हुआ, यह उसके जमानत को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। पीठ ने कहा कि जमानत देने और जमानत रद्द करने के मानदंड पूरी तरह से अलग हैं। पीठ ने यह भी कहा है कि आरोपी यदि जमानत के किसी भी शर्तों का उल्लंघन करता है या फिर दी गई किसी भी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है या फिर साक्ष्यों व गवाहों को प्रभावित करता है तो उसकी जमानत को रद्द किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले में उपरोक्त कोई कारण नजर नहीं आता है। इसके साथ ही, कोलकाता उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें निजी रूप से पेश नहीं होने के चलते जमानत को रद्द कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश आरोपी की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर दिया है। याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा जमानत रद्द किए जाने को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि आरोपी कोर्ट में इसलिए नहीं पहुंच पाए थे क्योंकि वीवीआईपी आवाजाही की वजह से यातायात जाम लग गया था।