लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया. उनका कार्यकाल 5 दिसंबर 2027 तक था और अगले साल फरवरी में वह मौजूदा राजीव कुमार के सेवानिवृत्त (रिटायर) होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) बनने वाले थे. इसी साल फरवरी में अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति और अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में अब केवल एक सदस्य मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं. हालांकि कानून मंत्रालय के नोटिफिकेशन के अनुसार अरुण गोयल का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया है. लेकिन ये साफ नहीं हो सका है कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया.
अरुण गोयल 1985 बैच पंजाब कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी रहे हैं. 37 वर्षों से अधिक की सेवा के बाद वह भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए. जबकि नवंबर 2022 में चुनाव आयोग में शामिल हुए थे. यहां गौर करने वाली बात ये है कि उन्होंने 18 नवंबर 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी, लेकिन इसके अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था, जिस पर विवाद छिड़ गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था. शीर्ष अदालत ने अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल तलब की थी और सरकार से पूछा था कि उनकी नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ पहले ही इस मुद्दे को देख चुकी है. जस्टिस (अब सेवानिवृत्त) केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल का अवलोकन किया था, लेकिन कुछ टिप्पणी करने के बावजूद नियुक्ति रद्द करने से इनकार कर दिया था. पिछले साल मार्च में जस्टिस जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार को सीईसी और ईसी की नियुक्ति पर कानून लाने का आदेश दिया था.
कांग्रेस ने खड़े किए ये तीन सवाल
इलेक्शन कमिश्नर के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि चुनाव आयुक्त पद से अरुण गोयल का इस्तीफा तीन सवाल खड़े करता है.
1. क्या उन्होंने वास्तव में मुख्य चुनाव आयुक्त या मोदी सरकार के साथ मतभेदों पर इस्तीफा दिया. जो सभी कथित स्वतंत्र संस्थानों के लिए सबसे आगे रहकर काम करती है?
2. क्या उन्होंने निजी कारणों से इस्तीफा दिया?
3. क्या उन्होंने कुछ दिन पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह भाजपा के टिकट पर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था?
‘हर दिन लोकतांत्रिक संस्थानों को झटका दे रहा’
जयराम रमेश ने कहा कि चुनाव आयोग ने 8 महीने से वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) के मुद्दे पर देश की राजनीतिक पार्टियों से मिलने से इनकार कर दिया है, जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हेरफेर (EVM) को रोकने के लिए बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के भारत में प्रत्येक बीतता दिन लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों पर एक अतिरिक्त झटका दे रहा है.
खड़गे ने किया केंद्र सरकार पर हमला
वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर एक पोस्ट में कहा कि चुनाव आयोग या चुनाव चूक? भारत में अब केवल एक चुनाव आयुक्त हैं, जबकि कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनावों की घोषणा होनी है. उन्होंने कहा कि अगर स्वतंत्र संस्थानों का ”व्यवस्थित विनाश” नहीं रोका गया तो तानाशाही द्वारा लोकतंत्र पर कब्जा कर लिया जाएगा.
कैसे होगी CEC-EC की नियुक्त?
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर नए कानून के अनुसार कानून मंत्री की अध्यक्षता और 2 केंद्रीय सचिवों वाली एक सर्च कमेटी 5 नामों को शॉर्टलिस्ट करेगी. इसके बाद चयन समिति किसी एक नाम को चुनती है. इसके बाद सीईसी या ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. चयन समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं. सिलेक्शन कमेटी में प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होते हैं. मूल रूप से चुनाव आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था, लेकिन वर्तमान में सीईसी और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं. दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त पहली बार 16 अक्टूबर 1989 को नियुक्त किए गए थे, लेकिन उनका कार्यकाल 1 जनवरी 1990 तक बहुत छोटा था. बाद में 1 अक्टूबर 1993 को 2 अतिरिक्त चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए.
अशोक लवासा ने 4 साल पहले दिया था EC के पद से इस्तीफा
पिछले 4 साल में अशोक लवासा के बाद ये दूसरे चुनाव आयुक्त हैं, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया है. लवासा के पद पर रहते चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर के साथ उनके मतभेदों के किस्से सार्वजनिक थे. अगस्त 2020 में लवासा ने चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने पिछले लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा लिए गए विभिन्न मॉडल कोड उल्लंघन निर्णयों पर असहमति जताई थी.