कुख्यात माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव जल्द सलाखों से बाहर निकलने वाला है। पुणे के एडिशनल पुलिस कमिश्नर की हत्या के जुर्म में वह करीब 25 साल से सजा काट रहा है। बरेली सेंट्रल जेल में बंद माफिया की रिहाई के लिए जेल प्रशासन की ओर से एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इस प्रस्ताव में बबलू श्रीवास्तव के अलावा मंगेश और सैनी का भी नाम है। शासन से स्वीकृति मिलने के बाद तीनों जेल से रिहा हो जाएंगे।
15 अगस्त को मिल सकती है रिहाई
माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव और उसके दो साथी मंगेश उर्फ मंगे और कमल किशोर सैनी बरेली सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। जेल प्रशासन ने उनके अच्छे आचरण और 25 साल की सजा पूरी होने का हवाला देते हुए तीनों को रिहा करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। शासन की ओर से बरेली पुलिस और प्रशासन से भी तीनों की रिपोर्ट मंगाई है। अधिकारियों की मानें तो शासन ने तीनों की रिहाई की अनुमति जल्द मिल सकती है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो तीनों 15 अगस्त को 25 साल बाद जेल से बाहर आएंगे।
पुणे के एसीपी की सरेआम कर दी थी हत्या
माफिया बबलू श्रीवास्तव की गिनती जरायम की दुनिया के सबसे कुख्यात चेहरों में होती है। उसने अपने कारनामों से पुलिस की नींद उड़ा रखी थी। लेकिन उसके नाम को लेकर सबसे बड़ी सनसनी तब मची, जब उसने अपने साथियों के साथ मिलकर पुणे के एडिशनल पुलिस कमिश्नर एलडी अरोड़ा को सरेआम गोलियों से भून डाला था। बबलू को 1995 में मॉरिशस से गिरफ्तार कर भारत लाया गया था। फिर इस मामले में अदालत में उस पर और उसके दो साथी मंगेश और कमल किशोर सैनी पर हत्या का मुकदमा चला। कोर्ट ने तीनों को दोषी मानते हुए 1999 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तभी से तीनों बरेली सेंट्रल जेल में बंद हैं।
लॉ की पढ़ाई करता था बबलू
जरायम की दुनिया में किडनैपिंग किंग के नाम से कुख्यात माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव की कहानी काफी फिल्मी है। एक मध्यम वर्ग परिवार का होनहार लड़का चुनावी रंजिश के कारण अपराध की गलियों में चल पड़ा। मूल रूप से यूपी के गाजीपुर का रहने वाला बबलू श्रीवास्तव का असली नाम ओम प्रकाश श्रीवास्तव है। उसके पिता विश्वनाथ प्रताप श्रीवास्तव जीटीआई में प्रिंसिपल थे। उसका बड़ा भाई विकास श्रीवास्तव सेना में कर्नल रैंक का अधिकारी है। बबलू ने खुद एकबार बताया था कि वो भी अपने भाई के नक्शेकदम पर चलकर फौजी बनना चाहता था लेकिन कॉलेज की एक छोटी सी घटना ने उसकी पूरी दुनिया ही बदल दी और वह कुछ और ही बन गया। माफिया बबलू श्रीवास्तव लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून का छात्र था।
ऐसे हुई अपराध की दुनिया में एंट्री
1982 में लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के चुनाव हो रहे थे। बबलू का साथी नीरज जैन चुनाव में महामंत्री पद का उम्मीदवार था। कैंपस का माहौल चुनाव के कारण गरमाया हुआ था। बबलू अपने साथी की जीत के लिए पूरी ताकत लगा चुका था। इसी दौरान दो छात्र गुटों में झगड़ हुआ और किसी ने एक छात्र को चाकू मार दी। घायल छात्र का संबंध उस दौर में लखनऊ के चर्चित माफिया रहे अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना से था। अन्ना ने इस मामले में बबलू श्रीवास्तव को जेल भिजवा दिया। यहीं से बबलू के अंदर बदले की आग धधकने लगी। जेल से छूटते ही वह अन्ना के विरोधी गैंग में शामिल हो गया। इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन बैठा।
दाऊद के साथ भी कर चुका है काम
माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव ने जेल में रहते हुए अपने जीवन पर एक किताब भी लिखी है, जिसका शीर्षक है ‘अधूरा ख्वाब’। इस किताब में उसने विस्तार से अपनी जिंदगी की कई घटनाओं का जिक्र किया है। उसने इसमें उन वारदातों का भी जिक्र किया है, जिसकी वजह से उसे किडनैपिंग किंग की संज्ञा दे दी गई थी। इसी किताब में उसने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम से मुलाकात, उससे दोस्ती और फिर उससे अदावत की कहानी भी बताई है। उसने बताया कि मुंबई धमाकों के कारण दाऊद और उसके रास्ते अलग हो गए थे।