नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय आरोपी को ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे सकते हैं। भले ही एफआईआर किसी दूसरे राज्य में ही क्यों न दर्ज हो। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ राजस्थान में एक महिला की ओर से दायर दहेज की मांग की शिकायत से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें पति को बेंगलुरु जिला अदालत से अग्रिम जमानत मिली थी।
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि हाईकोर्ट या सत्र अदालतें किसी आरोपी को ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे सकती हैं, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं किया गया हो और अंतरिम सुरक्षा तब तक जारी रहेगी जब तक आरोपी क्षेत्राधिकार वाली अदालत में नहीं पहुंचता। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि अदालतों को नागरिकों की स्वतंत्रता पर विचार करते हुए सीमित अंतरिम सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने पर कुछ शर्तें लगाईं। इसने फैसला सुनाया कि जांच अधिकारी और एजेंसी को ऐसी सुरक्षा की पहली तारीख को नोटिस दिया जाना चाहिए और आवेदक को अदालत को संतुष्ट करना होगा कि वे क्षेत्राधिकार वाली अदालत से संपर्क करने में सक्षम नहीं हैं।
अदालत ने फैसला सुनाते हुए ऐसी अग्रिम जमानत देते समय क्षेत्रीय निकटता का पता लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी सिर्फ जमानत याचिका दायर करने के लिए दूसरे राज्य की यात्रा नहीं कर सकते और ऐसा करने के लिए उनके पास स्पष्ट कारण होना चाहिए। मामला शीर्ष अदालत में आया क्योंकि विभिन्न उच्च न्यायालयों ने पहले ट्रांजिट अग्रिम जमानत के मामले में अलग-अलग विचार रखे थे।