नैनीतालः उत्तराखंड में प्लास्टिक से निर्मित कचरे पर प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने पूर्व में दिए गए आदेशों का पालन नहीं करने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है. कोर्ट ने कहा कि सड़कों, नालों, जंगलों, निकायों में कूड़े के ढेर लगे हुए हैं. ये उन्होंने खुद देखा है और कर्मचारी स्वच्छता पर उदासीन हैं. साथ ही टिप्पणी करते हुए कहा कि आगामी 18 जून को सभी ज्यूडिशियरी स्वच्छता अभियान चलाएगी. जिसमें हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गण, कर्मचारी भी शामिल होंगे और सरकार से भी अपेक्षा की गई है कि वो इसमें शामिल हों. मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी.
नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दिए ये निर्देश-
- हाईकोर्ट ने अर्बन डेवलपमेंट को पूर्व के आदेशों का सख्ती से पालन कराने को कहा है. साथ ही केदारनाथ यात्रा के दौरान जिस तरह प्लास्टिक की बोतलों पर रिफंडेबल क्यूआर कोड लगाया जा रहा उसी तर्ज पर मैन्युफैक्चरर स्तर पर क्यूआर कोड लगाने कहा है. इसको चारधाम के अलावा पूरे प्रदेश में भी लागू करने को कहा है.
- कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि जितनी भी सड़कें केंद्र सरकार के बजट से बनाई जा रही हैं, उन सड़कों की ऊपरी सतह प्लास्टिक वेस्ट से बनाई जाएं. निदेशक शहरी विकास को निर्देश दिए हैं कि जहां भी वेस्ट फैला है, उसको युद्ध स्तर पर साफ किया जाए.
- कोर्ट ने केंद्र सरकार के स्वच्छतम भारत ऐप और उच्च न्यायालय की ओर से शिकायत वेबसाइट का व्यापक प्रचार प्रसार करने को कहा है. जिसमें जागरूक नागरिक अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें. जिससे उनकी समस्याओं का निस्तारण हो सकें. कोर्ट भी खुद इसकी मॉनिटरिंग करेगी.
- सफाई कर्मचारियों की फिजिकल वेरिफिकेशन किया जाए, जिससे पता चल सके कि कौन कर्मचारी काम पर है और कौन नहीं? बायोमेट्रिक मशीन भी लगाई जाए.
- जिन वन पंचायतों का मैप अभी अपलोड नहीं हुआ है, उनका मैप 6 हफ्ते के भीतर अपलोड करें. अभी तक उत्तराखंड में 10600 वन पंचायतों के खसरे-मानचित्र अपलोड हो चुके हैं. शेष 1100 वन पंचायतों के रिकार्ड अपलोड होने बचे हैं.
- कूड़े की गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम लगाने को कहा है. गाड़ियों में डस्टबिन लगे हैं या नहीं पुलिस उसकी देखरेख करे.
- एनजीटी ने सॉलिड वेस्ट के लिए राज्य सरकार पर 200 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है. राज्य सरकार उसका उपयोग वेस्ट के निस्तारण के लिए करें. खासकर ग्रामीण इलाकों में कूड़ा निस्तारण की सुविधाएं विकसित करने में करें.
वहीं, सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने कहा कि सरकार ने कई क्षेत्रों में कूड़ा निस्तारण के लिए व्यापक अभियान चलाया है. 18 जून को व्यापक स्वच्छता अभियान में सरकार सहयोग करेगी. सरकार ने रुड़की और काशीपुर में पीसीबी के साथ मिलकर कई लोगों का चालान भी किया है. अधिवक्ता राजीव सिंह बिष्ठ ने कोर्ट का मार्गदर्शन करते हुए कहा सिक्किम की तर्ज पर राज्य में भी इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए. जिससे लोगों को इसका पता लग सके कि इससे पर्यावरण को कितना नुकसान होता है.
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह ने कोर्ट से कहा कि पर्यावरण की क्षति के लिए केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की नियमावली में गंदगी फैलाने वालों से कंपनसेशन लेने का प्रावधान है, लेकिन राज्य प्रदूषण बोर्ड को इसको लेने की अनुमति नहीं है. अगर उन्हें इसे लेने की अनुमति मिल जाती है तो इसका उपयोग पर्यावरण क्षति की भरपाई करने के लिए किया जा सकता है. जिस पर कोर्ट ने इस पर स्थिति स्पष्ट करने को केंद्र से कहा है.
क्या है मामलाः गौर हो कि अल्मोड़ा के हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने साल 2013 में बने प्लास्टिक यूज और उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. साल 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे, जिसमें उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वो जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे. अगर नहीं ले जाते हैं तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका और अन्य फंड देंगे, जिससे कि वो इसका निस्तारण कर सकें, लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं. इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है.