नई दिल्ली। विधि आयोग ने सिफारिश की है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-124ए को बरकरार रखने की जरूरत है, हालांकि इसके इस्तेमाल के बारे में अधिक स्पष्टता के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।
आयोग ने क्या दिया सुझाव?
आयोग ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि धारा-124ए के दुरुपयोग को रोकने के लिए वह केंद्र सरकार द्वारा माडल गाइडलाइंस को जारी करने की सिफारिश करता है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने संलग्न पत्र में 22वें विधि आयोग के चेयरमैन जस्टिस (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी ने कहा है, ”इस संदर्भ में यह भी सुझाव दिया जाता है कि सीआरपीसी, 1973 की धारा-196(3) के अनुरूप सीआरपीसी की धारा-154 में एक प्रविधान जोड़ा जा सकता है, जो आइपीसी की धारा-142ए के तहत अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने से पहले आवश्यक प्रक्रियागत सुरक्षा उपलब्ध कराएगा।”
आयोग का यह भी कहना है कि किसी प्रविधान के दुरुपयोग का कोई भी आरोप उस प्रविधान को वापस लेने का आधार नहीं हो सकता। साथ ही औपनिवेशिक विरासत होना भी इसे वापस लेने का वैध आधार नहीं है। रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून अपराध के उन सभी तत्वों को कवर नहीं करते, जिनका वर्णन आईपीसी की धारा-124ए में किया गया है।
आयोग ने विभिन्न देशों का दिया उदाहरण
आयोग ने कहा कि प्रत्येक देश की कानूनी प्रणाली अलग-अलग तरह की वास्तविकताओं से जूझती है। आईपीसी की धारा-124ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, निश्चित रूप से भारत की जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना होगा। संलग्न पत्र में जस्टिस अवस्थी ने इस बात का जिक्र किया है कि धारा-124ए की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
केंद्र ने शीर्ष अदालत को आश्वस्त किया कि वह इस धारा पर पुनर्विचार कर रही है और अदालत को इस पर अपना कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। उसी के अनुरूप शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा-124ए के संबंध में जारी सभी जांचों को स्थगित करते हुए कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने या कोई कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया था। साथ ही यह भी निर्देश दिया था कि सभी लंबित मुकदमों, अपीलों व कार्यवाहियों को स्थगित रखा जाए।