लखनऊ: सोशल मीडिया पर भी बिना अनुमति के बयानबाजी या नीतियों को लेकर सवाल उठाना सरकारी कर्मचारियों पर भारी पड़ सकता है। कार्मिक विभाग ने शासन के आला अफसरों को ‘सरकारी सेवकों के संचार माध्यमों के उपयोग’ के नियम याद दिलाए हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि स्पष्ट नियम के बावजूद भी बयानबाजी से असहज स्थिति पैदा हो रही है। इसे रोका जाएगा और नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई की जाए। अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक देवेश चतुर्वेदी ने सभी अपर मुख्य सचिवों/प्रमुख सचिवों को इसके आदेश जारी किए गए हैं।
कार्मिक विभाग की ओर से जारी आदेश में मीडिया में बात रखने के लिए सरकारी कर्मचारियों के लिए तय गाइडलाइन का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार कोई सरकारी कर्मचारी सरकार या संबंधित प्राधिकारी से अनुमति के बिना मीडिया में लिखा-पढ़ी नहीं करेगा। कोई ऐसा लेख या बयान नहीं जारी करेगा, जिससे वरिष्ठ अधिकारियों या सरकार के फैसलों की आलोचना होती हो। किसी सूचना का भी अनधिकृत लेन-देन नहीं करेगा। यह भी कहा गया है कि मीडिया का स्वरूप अब विस्तृत हो चुका है। इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा सोशल मीडिया (फेसबुक, एक्स, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम ) और डिजिटल मीडिया भी शामिल है।
अनुशासनहीनता की हैं शिकायतें
आदेश में कहा गया है कि नियमावली में स्पष्ट प्रावधान के बावजूद कुछ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा मीडिया में बयान दिए जा रहे हैं। इससे सरकार के समक्ष असहज स्थिति पैदा हो रही है। अधिकारियों-कर्मचारियों का यह काम नियमों की अवहेलना और अनुशासनहीनता का परिचायक है, इसलिए इन निर्देशों का अपने सभी अधीनस्थों में कड़ाई से अनुपालन कराएं। नियमावली के विपरीत कोई आचरण करता पाया जाए, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।