महाराष्ट्र की शिंदे सरकार अब ‘अर्बन नक्सल’ से निपटने के लिए एक नया कानून लाने जा रही है. इसे लेकर विधानसभा में बिल पेश किया जा चुका है. नए कानून को लाने का मकसद शहरी इलाकों में बढ़ रही नक्सलवाद की मौजूदगी से निपटना है.
‘महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट 2024’ नाम से पेश किए गया ये बिल अगर कानून बनता है तो इससे शहरी इलाकों में बढ़ते नक्सलवाद और उसके खतरों से निपटा जा सकेगा.
क्यों लाया गया ये बिल?
इस बिल को पेश करते हुए डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया था कि नक्सलवाद अब सिर्फ महाराष्ट्र के दूरदराज इलाकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अलग-अलग संगठनों के जरिए ये शहरों में भी तेजी से बढ़ रहा है.
सरकार का कहना है कि ये संगठन नक्सलियों को हथियार और फंडिंग मुहैया कराने में मदद करते हैं और मौजूदा कानून इससे निपटने में सक्षम नहीं है.
बिल के मुताबिक नक्सल प्रभावित चार राज्यों- छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में भी पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट है और यहां 48 नक्सली संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है.
क्या है इस कानून में प्रावधान?
इस बिल के कानून बनते ही सरकार के पास किसी भी संदिग्ध संगठन को ‘गैरकानूनी’ घोषित करने का अधिकार मिल जाएगा. प्रस्तावित बिल में चार तरह के अपराध बताए गए हैं, जिनमें किसी व्यक्ति को सजा हो सकती हैः-
1. किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य होने पर.
2. अगर सदस्य नहीं है तो ऐसे संगठन के लिए फंड जुटाने पर.
3. किसी गैरकानूनी संगठन की मदद करने या उसका प्रबंध करने पर.
4. कोई भी गैरकानूनी गतिविधि करने पर.
इन चारों अपराधों में 2 से 7 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही 2 से 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान भी है.
गैरकानूनी गतिविधि को अंजाम देने पर सबसे सख्त सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 7 साल की जेल और 5 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.
प्रस्तावित बिल में इन अपराधों को संज्ञेय की श्रेणी में रखा गया है. इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है और ये सारे अपराध गैर-जमानती भी हैं.
किसे माना जाएगा गैरकानूनी गतिविधि?
प्रस्तावित बिल में इन कृत्यों को गैरकानूनी गतिविधि माना गया हैः-
1. अगर कोई सार्वजनिक व्यवस्था और शांति के लिए खतरा बनता है.
2. अगर कोई सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में अड़ंगा डालता है या अड़ंगा डालने की कोशिश करता है.
3. अगर कोई व्यक्ति कानून, संस्थानों और कर्मचारियों के कामकाज में दखलंदाजी करता है या करने की कोशिश करता है.
4. हिंसा, तोड़फोड़ या जनता में डर पैदा करने वाले कामों में शामिल होना या विस्फोटक और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल करना या रेल, सड़क, हवा और पानी के संचार को बाधित करना या ऐसा करने की कोशिश करना गैरकानूनी गतिविधि मानी जाएगी.
5. कानून और सरकार की संस्थाओं की प्रति आज्ञा का उल्लंघन करना या ऐसा करने के लिए जनता को प्रोत्साहित करना.
6. इस तरह के सारे काम करने के लिए पैसा और सामान जुटाना भी गैरकानूनी गतिविधि मानी जाएगी.
UAPA से कितना अलग है ये बिल?
आतंकी और गैरकानूनी गतिविधियों से निपटने के लिए 1967 से अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट यानी UAPA है. नक्सलवाद से जुड़े मामलों से निपटने के लिए भी इसी कानून का इस्तेमाल किया जाता है.
UAPA के तहत भी सरकार किसी संगठन को गैरकानूनी गतिविधि करने पर उसे गैरकानूनी संगठन घोषित करते हुए प्रतिबंधित कर सकती है. हालांकि, UAPA और महाराष्ट्र के बिल में प्रक्रिया थोड़ी अलग है.
UAPA के तहत, अगर किसी संगठन को प्रतिबंधित किया जाता है तो हाईकोर्ट के जज की अगुवाई में एक ट्रिब्यूनल इस फैसले पर मुहर लगाती है. वहीं, महाराष्ट्र के प्रस्तावित बिल के मुताबिक, ऐसा करने के लिए तीन सदस्यों का एक एडवाइजरी बोर्ड होगा. ये सदस्य वो होंगे जिनमें हाईकोर्ट का जज बनने की काबिलियत होगी.
कब तक बनेगा कानून?
महाराष्ट्र सरकार के इस बिल को कानून बनने में अभी काफी लंबा वक्त लग सकता है. इस बिल को शिंदे सरकार ने विधानसभा में आखिरी वक्त में पेश किया.
बीते हफ्ते विधानसभा का सत्र 12 जुलाई को खत्म हो गया है. नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले सत्र नहीं होगा. इसका मतलब ये हुआ कि नई सरकार गठन के बाद इस बिल को दोबारा विधानसभा में पेश करना होगा.
हालांकि, मौजूदा सरकार अध्यादेश लाकर इस बिल को कानून बना सकती है, लेकिन इसके बाद भी छह महीने के भीतर-भीतर इसे विधानसभा और विधान परिषद से पास करवाना जरूरी होगा.
क्या है अर्बन नक्सल?
साल 2018 में पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव दंगों के मामले में देश के अलग-अलग हिस्सों से कई बुद्धिजीवियों को हिरासत में लिया. इनमें वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, स्टेन स्वामी, साई बाबा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण परेरा जैसे नाम शामिल थे. पुलिस के मुताबिक, इनके पास से एक पत्र बरामद हुआ, जिसमें कथित तौर पर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का जिक्र भी था. इन्हें अर्बन नक्सल कहा गया. हालांकि ये टर्म दंगों से एक साल पहले ही चर्चा में आ चुकी थी.
फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री ने मई 2017 में एक इंटरव्यू के दौरान ऐसे लोगों को अर्बन नक्सल कहा था, जो शहरों में रहते हुए सत्ता-विरोधी गतिविधियों को हवा देते हैं. ठीक तुरंत बाद उन्होंने एक किताब लॉन्च की, जिसका शीर्षक ही था- अर्बन नक्सल.
भीमा कोरेगांव केस की ही बात करें तो इसमें जिनको पकड़ा गया, उनमें से लगभग सभी बुद्धिजीवी जमात से थे. इस वजह से इंटरनेशनल स्तर पर भी मुद्दा उछला था. एनआईए ने भी तब आरोपियों को अर्बन नक्सल बताया था. जिस तरह से जांच हुई, उसमें माना गया कि शहरों में रहते इंटेलेक्चुअल हिंसा की स्टोरी रचते हैं, जिसपर देशविरोधी ताकतें फंडिंग करती हैं. ये लोग कथित तौर पर एक खास मांग के साथ दंगा-फसाद भड़काते हैं.
पढ़े-लिखे पत्रकार, कवि, कलाकार, स्थानीय लीडर, मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रोफेसर या इसी श्रेणी के लोग जो अपने पेशे की आड़ में कथित तौर पर नक्सल गतिविधियों को प्रमोट कर रहे हों, इस श्रेणी में आते हैं. लेकिन इसमें भी एक ट्विस्ट है. ये समाज का ऐसा हिस्सा है जो खुद को हमेशा ही तटस्थ बताता है, साथ ही हिंसा से दूर रहने की बात करता है.